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Trains Canceled by Indian Railways on Jan 8,2025

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January 8, 2025 – Indian Railways has announced the cancellation of more than 120 trains across various routes nationwide. This widespread disruption affects passenger, express, and special trains, causing inconvenience

January 8, 2025
7.1 Earthquake Hits Tibet, Tremors Felt in Nepal and India

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A 7.1 magnitude earthquake struck Tibet near the Nepal border early today. As a result, strong tremors were felt in Nepal and parts of North India, creating panic among residents.

January 7, 2025
Humane Society Sarasota: Life Saving Mission

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Humane Society of Sarasota County Florida The organization is a nonprofit organization dedicated to the well-being and care of animals in the Sarasota, Florida, area.The organization focuses on the rescue, rehabilitation,

November 16, 2024


 

गुरु नानक जयंती ( Guru Nanak Jayanti) सिक्ख धर्म के लिए एक बड़ा त्योहार है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाई जाती है और उसके पंद्रह दिनों बाद यानी कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ‘गुरु नानक जयंती’ को मनाया जाता है। ये पर्व भी दीपावली की तरह से मनाया जाता है। इस पर्व की लोग महीनों पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं। गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व या गुरु पर्व भी कहते हैं। यही कारण है कि गुरु नानक देव की जयंती के मौके पर चारों ओर दीप जलाकर रोशनी की जाती है। इस खास दिन को गुरु नानक देव के जन्म की खुशी में मनाया जाता है।

इतिहास

गुरु नानक देव सिक्ख धर्म के पहले गुरु थे। उनका जन्म 1469 ई. को हुआ था। नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को पंजाब (अब पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ। अब गुरु नानक जी का ये जन्म स्थल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद ननकाना साहिब में स्थित है। इस जगह को गुरु नानक देव के नाम से जाना जाता है। यहां देश विदेश से लोग प्रसिध्द गुरुद्वारा ननकाना साहिब के दर्शन के लिए आते हैं। कहा जाता है कि सिक्ख साम्राज्य के राजा महाराजा रणजीत सिंह ने यह गुरुद्वारा ‘ननकाना साहिब’ बनवाया था।

कौन थे गुरु नानक

गुरुनानक देव ने मूर्ति पूजा को निरर्थक माना और सदैव रूढ़ियों प्रथाओ और कुसंस्कारों के विरोध में रहे। माना जाता है कि गुरु नानक जी ने ही सिख समाज की नीव रखी थी। सिख समुदाय के गुरु नानक देव जी पहले गुरु थे। इस कारण से ही उनकी विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। गुरु नानक देव जी को उनके अनुनायी नानक देव, बाबा नानक और नानकशाह के नाम से पुकारा जाता है और उन्हें लद्दाख और तिब्बत क्षेत्र में ‘नानक लामा’ भी कहा जाता है। नानक जी की मृत्यु 22 सितम्बर, 1539 ई.पू. को हुई। अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाना गया।

जीवन और सिद्धांत

गुरु नानक देव जी के जीवन और उनके कार्यों का प्रभाव भारतीय इतिहास और समाज पर गहरा और स्थायी है। उनका जन्म 1469 में हुआ था, एक ऐसा समय जब भारतीय समाज में जाति प्रथा गहरी जड़ें जमाए हुए थी। जाति प्रथा के कारण समाज में आर्थिक और सामाजिक असमानता फैली हुई थी, जिससे गरीब वर्ग की स्थिति अत्यधिक दयनीय थी और उच्च वर्ग लगातार अपने प्रभाव का विस्तार कर रहा था। इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को बदलने का बीड़ा गुरु नानक देव ने उठाया।

गुरु नानक का दृष्टिकोण और उनका स्वप्न

गहन आत्म-चिंतन और साधना के बाद, गुरु नानक को एक दिव्य अनुभव प्राप्त हुआ। उन्होंने पाया कि परमात्मा के साथ जुड़ने के लिए किसी औपचारिक संस्थान, पुरोहितों, या जाति प्रथा की आवश्यकता नहीं है। उनका यह स्वप्न भारतीय समाज के लिए एक क्रांतिकारी संदेश था। इसमें गुरु नानक ने सभी मनुष्यों को समानता का अधिकार दिया और बताया कि प्रत्येक व्यक्ति का परमात्मा से सीधा संबंध है। यह संदेश, “इक ओंकार” (ईश्वर एक है), आज भी सिक्ख धर्म का मूल सिद्धांत है, जो सभी मनुष्यों को समान दृष्टि से देखता है।

जाति प्रथा का विरोध और सामाजिक सुधार

गुरु नानक देव जी ने पुरोहित वर्ग और जाति प्रथा का विरोध किया, जो तब सामाजिक असमानता का मुख्य कारण थी। उन्होंने यह घोषित किया कि सभी लोग एक समान हैं और प्रत्येक व्यक्ति का ईश्वर से सीधा संबंध हो सकता है। इसके अलावा, गुरु नानक ने वेदों और धार्मिक शास्त्रों को पढ़ने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह मानते थे कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए किसी भी बाहरी ज्ञान या माध्यम की आवश्यकता नहीं है।

गुरु नानक के उपदेशों ने समाज में भेदभाव, अस्पृश्यता, और सामाजिक असमानता के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठाई। उनके इस दृष्टिकोण ने भारतीय समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को प्रेम, करुणा, और समानता का अधिकार प्राप्त हुआ।

गुरु नानक का जीवन और उनके कार्य सामाजिक और धार्मिक परंपराओं को चुनौती देने का प्रतीक हैं। उनकी विचारधारा उस समय के धार्मिक और सामाजिक ढांचे के खिलाफ थी, इसीलिए शुरुआत में उन्हें “विधर्मी” के रूप में देखा गया। पारंपरिक पुरोहितों और उच्च जाति के लोगों के लिए गुरु नानक का संदेश अस्वीकार्य था, क्योंकि उन्होंने परमात्मा को प्राप्त करने के स्थापित तरीकों, जैसे कि जाति प्रथा, उपवास, तीर्थ यात्रा, और पारंपरिक अनुष्ठानों को पूरी तरह से नकार दिया।

दलितों और निम्न वर्ग के लिए प्रेरणास्त्रोत

गुरु नानक की शिक्षाओं ने विशेष रूप से दलितों और निम्न वर्ग के लोगों को एक नई राह दिखाई। वे उनके सिद्धांतों में अपने जीवन की बेहतरी देख सके, जहाँ उन्हें समानता, इज्जत, और आत्मसम्मान का अधिकार मिला। गुरु नानक ने हर व्यक्ति को यह भरोसा दिलाया कि जाति, रंग, या सामाजिक स्थिति का परमात्मा से जुड़ने पर कोई प्रभाव नहीं है। इसने उन्हें समाज के नायक के रूप में स्थापित किया, और उनके अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी।

नैतिकता और आध्यात्मिकता पर आधारित जीवन

गुरु नानक ने यह स्पष्ट किया कि परमात्मा से जुड़ने के लिए तीर्थ स्थलों और उपवास जैसे बाहरी कर्मकांड आवश्यक नहीं हैं। उन्होंने अपने अनुयायियों को एक नैतिक, सच्चाईपूर्ण और समर्पित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। उनकी शिक्षाओं में प्रार्थना, सेवा, और परोपकार को सर्वोपरि माना गया, जहाँ हर व्यक्ति को समाज की भलाई और ईश्वर की आराधना में संलग्न रहना चाहिए।

राजनैतिक और धार्मिक विरोध

गुरु नानक के विचारों ने उन्हें न केवल पारंपरिक पुरोहितों का, बल्कि तत्कालीन मुग़ल सत्ता का भी विरोधी बना दिया। मुग़ल शासक बाबर के अत्याचारों का विरोध करने के कारण उन्हें बंदी भी बनाया गया था। बाबर की कैद के दौरान भी गुरु नानक ने अपने सिद्धांतों को बनाए रखा और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, जिससे उन्होंने धार्मिक और राजनीतिक अन्याय के विरोध का उदाहरण पेश किया।

सिक्ख धर्म की स्थापना

गुरु नानक के कार्यों और सिद्धांतों ने समाज को एक नई दिशा दी और सिक्ख धर्म की नींव रखी, जो समानता, सेवा, और प्रेम पर आधारित है। उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाया। उनके नौ उत्तराधिकारी गुरुओं ने उनकी आध्यात्मिकता और बुद्धिमता को अपनाया और उनके सिद्धांतों को समाज में स्थापित किया, जिनके माध्यम से सिक्ख धर्म का विकास हुआ और वह एक संगठित धर्म के रूप में उभर कर सामने आया।

गुरु नानक का जीवन उन सिद्धांतों का प्रतीक है जो व्यक्तिगत मुक्ति से अधिक समाज और मानवता की भलाई पर केंद्रित हैं। उनका संदेश आज भी समानता, सामाजिक न्याय, और आध्यात्मिक जागरूकता के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।

गुरु नानक देव जी की प्रमुख शिक्षाएँ

  1. ईश्वर एक है: गुरु नानक जी का मानना था कि परमात्मा एक है, जिसे हम सभी के अंदर देख सकते हैं। “इक ओंकार” का संदेश यह है कि हम सभी उसी एक ईश्वर के अंश हैं।
  2. नाम जपो (ईश्वर का स्मरण करो): जीवन में परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए। उनके अनुसार, सच्ची भक्ति और ईश्वर का ध्यान हमें आत्मिक शांति प्रदान करता है।
  3. किरत करो (ईमानदारी से मेहनत करो): गुरु नानक जी ने सिखाया कि हर व्यक्ति को ईमानदारी से और परिश्रम से अपनी आजीविका कमानी चाहिए। मेहनत और ईमानदारी से कमा कर जीवन यापन करना ही सच्चा जीवन है।
  4. वंड छको (बाँट कर खाओ): गुरुजी का मानना था कि हमें अपनी कमाई का एक हिस्सा जरूरतमंदों के साथ साझा करना चाहिए और समाज की भलाई के लिए काम करना चाहिए।
  5. सभी को समान समझें: गुरु नानक देव जी ने जाति, धर्म, और लिंग के आधार पर भेदभाव का विरोध किया। उनका संदेश था कि सभी मनुष्य एक समान हैं और हर किसी को बराबरी का अधिकार है।
  6. सेवा और परोपकार: उन्होंने लोगों को परोपकार करने और जरूरतमंदों की सहायता करने का उपदेश दिया। उनके अनुसार, सेवा ही सच्ची भक्ति है।
  7. सदाचार और संयमित जीवन: गुरु नानक जी ने बुराई से दूर रहने और संयमित जीवन जीने का संदेश दिया। उन्होंने सिखाया कि हमें बुरा काम करने के बारे में न सोचें और न ही किसी का अहित करें।
  8. सादगी और संतोष: गुरुजी ने सिखाया कि हमें सादा जीवन जीना चाहिए और लोभ-लालच से दूर रहना चाहिए। जीवन में संतोष ही असली सुख का स्रोत है।
  9. स्त्री-पुरुष समानता: उन्होंने स्त्रियों के अधिकारों का समर्थन किया और बताया कि समाज में स्त्री और पुरुष दोनों समान हैं। उनकी शिक्षाओं में स्त्रियों के प्रति आदर और सम्मान का भाव झलकता है।
  10. प्राकृतिक संतुलन: गुरु नानक जी ने प्रकृति के प्रति भी सम्मान का संदेश दिया और सिखाया कि हमें प्रकृति का आदर करना चाहिए और उसका संरक्षण करना चाहिए।

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ हमें प्रेम, दया, समानता, और सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके सिद्धांत आज भी समाज को एकजुट करने और मानवता की सेवा के लिए मार्गदर्शन का काम करते हैं।

पर्व की गतिविधियाँ

गुरु नानक जयंती या गुरुपुरब के अवसर पर कई धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियाँ होती हैं, जो इस विशेष दिन को मनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। यह दिन गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को याद करने और उनके योगदान को सम्मान देने का अवसर होता है। इस दिन की प्रमुख गतिविधियाँ निम्नलिखित होती हैं:

1. प्रभात फेरी (Early Morning Procession)

गुरु नानक जयंती पर, विशेष रूप से सिक्ख समुदाय में, “प्रभात फेरी” की परंपरा है। यह एक धार्मिक जुलूस होता है जो गुरुद्वारों से शुरू होता है और समाज के विभिन्न हिस्सों में जाता है। इसमें लोग साथ मिलकर भजन, कीर्तन, और गुरु नानक देव जी के उपदेशों का गायन करते हैं।

2. कीर्तन और शबद कीर्तन (Kirtan and Shabad Kirtan)

गुरुद्वारों में सुबह से लेकर देर रात तक शबद कीर्तन और भजन होते हैं। इसमें गुरु नानक के जीवन और उनके उपदेशों पर आधारित भजन गाए जाते हैं। लोग साथ मिलकर भक्ति में लीन होकर ईश्वर का स्मरण करते हैं।

3. लंगर (Community Kitchen)

गुरु नानक जयंती के दिन, गुरुद्वारों में “लंगर” का आयोजन होता है, जिसमें सभी को मुफ्त भोजन दिया जाता है। यह परंपरा गुरु नानक देव जी की सेवा और समानता के सिद्धांत को प्रकट करती है। इसमें किसी भी जाति या धर्म का भेदभाव नहीं होता है, और सभी को एक साथ भोजन कराया जाता है।

4. गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ (Reading of Guru Granth Sahib)

गुरु नानक जयंती के दिन, गुरु ग्रंथ साहिब का विशेष पाठ होता है। लोग गुरुद्वारों में इकट्ठा होकर इस पवित्र ग्रंथ के श्लोकों का श्रवण करते हैं, जो जीवन में सत्य और ईश्वर के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

5. दीप जलाना (Lighting of Lamps)

गुरु नानक जयंती को “प्रकाश पर्व” भी कहा जाता है। इस दिन गुरुद्वारों, घरों और सार्वजनिक स्थलों पर दीप जलाए जाते हैं, जो गुरु नानक देव जी के प्रकाश और उनके उपदेशों की रोशनी को प्रतीक रूप में प्रकट करते हैं।

6. समाजिक सभा और चर्चा (Social Gatherings and Discussions)

गुरु नानक जयंती के अवसर पर, समाज में धार्मिक सभा और चर्चा का आयोजन भी होता है। इसमें लोग गुरु नानक की शिक्षाओं पर विचार करते हैं और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझते हैं। यह समाज में सामूहिक जागरूकता और सद्भावना को बढ़ावा देने का एक तरीका है।

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